हाँ मैं डरता हूँ
हाँ मैं डरता हूँ
मैं इस बात से नहीं डरता कि तुम कौन हो,
मैं इस बात से भी नहीं डरता कि कल मेरा क्या होगा
मैं इस बात से भी नहीं डरता कि तुम डंडे मारोगे.
मैं डरता हूँ,
कल ईद और दीवाली साथ में मनाई जाएगी क्या?
कल होली पर गुजिया और ईद पर सेवईयों की महक आएगी?
जिसे गंगा-जमुनी कह कर हम इतराते हैं
क्या कल भी इस शब्द का कोई मायने होगा?
क्या कल रमज़ान में राजू के साथ रोज़ा खुलेगा?
क्या कल राखी पर अंजू मेरे हाथ पर धागा बाँधेगी?
क्या कल कोई रमज़ान में राम और दीवाली में अली ढूंढेगा?
क्या कल पंछियों से भी पूछा जायगा उनका मज़हब
और
उनका भी होगा देश निकाला?
या उन्हें भी भर दिया जाएगा कसाईबाड़े में इंसानो की तरह
हाँ में डरता हूँ बहुत डरता हूँ ,
तुमसे नहीं
इन सबके खोने का,
जिन्हें आज तक सीने से लगाकर
रखा है,
डर लगता है
ताजमहल और जमुना के अलग होने का
हाँ मैं बहुत डरता हूँ।