प्रवासी तुम घर आए
प्रवासी तुम घर आए
नर्म सुबह सुहानी
हुुई है सखी
घर आए मेरे प्रवासी।।
उम्मीद के दीप,देखो
ऑंखो में झिलमिलाए
आशा की लहरेें
हृृृृदय में हिलोर खाए,
प्रवासी मेरे तुुम घर आए।।
द्वार पर पल पल
टंंगी रहती थीं ऑखेेेेे
ये चौबारा ये आँँगन
सिसकियो मे जहाँ
उभरती थी यादेें तुुम्हारी
सज गयेे सब
खुुुशी होंठो पर लहराए,
प्रवासी मेरे तुुुम घर आए।।
स्नेह सिक्त हो भावनाएँ
बलिहारी जाएँ
मचलते मन मेें घुमङते
अनिश्चय के बादल को
तृप्ति की हँसी पिघलाए,
प्रवासी मेरे तुुम घर आए।।

