STORYMIRROR

Satish Chandra Pandey

Romance

4  

Satish Chandra Pandey

Romance

गुनगुनी धूप सी तुम

गुनगुनी धूप सी तुम

1 min
280

बढ़ रही ठंड में

गुनगुनी धूप सी तुम

जिन्दगी में सुगंध फैलाती

मनोहर धूप सी तुम।

मुस्कुराहट इस तरह की

नाजुक सी,

ठोस के साथ में घुलती

जरा सा भावुक सी।

कभी आलिम 

कभी हो पागल सी,

नेह से पूर्ण 

ढकते आँचल सी।

किसी झरने की

प्यारी कल कल सी

भार्या ही नहीं तुम तो

हो खुशियाँ पल-पल की।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance