छोड़ दे झूठी शान
छोड़ दे झूठी शान
उठ जा कविता लिख इंसान
कुछ तो सृजन कर धरती पर,
पत्थर को दे जान,
जितना अर्जित करता है तू
उसमें से दे दान।
और की सत्ता से मत डर तू
रब की सत्ता मान।
विष के कड़वे बोल सुना मत
बांट ले मीठा पान।
जैसा है वैसा रह ले तू
छोड़ दे झूठी शान।