अब बरसा जा बूंद
अब बरसा जा बूंद
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झुलस रहा है मन
तपिश से,
अब बरसा जा बूंद
ओ बदरा!
बदल गया क्यों ऐसे
ओ बदरा!
तू तो न था कंजूस
बरस जा
इस गर्मी ने
आज लिया है
खून बदन का चूस
ओ बदरा!
अब बरसा जा बूंद
खाली घड़े हैं,
पनघट सूखे,
विकल हैं प्राणी
प्यासे- भूखे।
तर कर जा ना
सबके हलक तू
तू तो न था कंजूस
ओ बदरा!
दे ठंडा जूस,
ओ बदरा!
अब बरसा जा बूंद।
