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Satish Chandra Pandey

Others

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Satish Chandra Pandey

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अब बरसा जा बूंद

अब बरसा जा बूंद

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झुलस रहा है मन 

तपिश से,

अब बरसा जा बूंद

ओ बदरा!

बदल गया क्यों ऐसे

ओ बदरा!

तू तो न था कंजूस

बरस जा

इस गर्मी ने 

आज लिया है

खून बदन का चूस

ओ बदरा!

अब बरसा जा बूंद 

खाली घड़े हैं,

पनघट सूखे,

विकल हैं प्राणी 

प्यासे- भूखे।

तर कर जा ना

सबके हलक तू

तू तो न था कंजूस

ओ बदरा!

दे ठंडा जूस,

ओ बदरा!

अब बरसा जा बूंद।



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