Satish Chandra Pandey

Classics

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Satish Chandra Pandey

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कुसुम खिलते हो तुम कैसे

कुसुम खिलते हो तुम कैसे

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कुसुम खिलते हो तुम कैसे

तुम्हारी पंखुड़ियों में रंग 

बताओ ! भरते हैं कैसे।


कौन है ऐसा चित्रकार

या कारीगर रंगों का,

कौन है इतना भाव समझता

विलग-विलग रंगों का।


कुछ पंखुड़ियां अलग रंग की

कुछ पराग हैं अलग तरह के

उनमें उड़ते भंवर-पतंगे

अलग-अलग ढंगों के।


खुशबू अलग-अलग भरता है

कारीगर रंगों का,

करता है श्रृंगार तुम्हारे

चेहरे के भावों का।


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