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मिली साहा

Classics

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मिली साहा

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भगवान विष्णु का वराह अवतार

भगवान विष्णु का वराह अवतार

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अत्याचार का अन्त करने भगवान विष्णु ने‌ लिया वराह अवतार।

वराह का सिर जिनका और तन मनुष्य लीला उनकी अपरंपार।।


जन्म के साथ ही माता दिति के दोनों पुत्र हो गए विशालकाय।

प्रसार करने लगे अधर्म का धरातल पर दोनों अपने पैर जमाए।।


यज्ञ हवन और अनुष्ठानों से देवताओं को जो मिलती थी शक्ति।

अपना बल प्रयोग कर दोनों ही नष्ट करने लगे तप और भक्ति।।


हिरण्याक्ष ने जीत लिया स्वर्ग लोक देवता गण बहुत घबराए।

करने लगे धरती पर विचरण हिरण्याक्ष को ये तनिक न भाए।।


कुपित हिरण्याक्ष ने धरती को ही समुद्र के गर्भ में छुपा दिया।

हाहाकार मचा चारों ओर देवताओं के मन भय घर कर गया।।


बल के दंभ में हिरण्याक्ष ने वरुण देव को जब था ललकारा।

मुझ में नहीं है शक्ति युद्ध करने की विनम्र भाव से समझाया।।


करना है युद्ध तुम्हें तो श्री नारायण से जाकर तुम युद्ध करो।

युगपुरुष श्री नारायण उनके समक्ष तुम बल का प्रयोग करो।।


उधर देवता सब ब्रह्माजी और विष्णुजी से लगाने लगे गुहार।

दया कीजिए प्रभु हिरण्याक्ष का बढ़ता जा रहा है अत्याचार।।


तब ब्रह्मा जी की नासिका से प्रकट हुए लेकर नया अवतार।

विष्णुजी वराह रूप में आए ‌धरा पर करने जगत का उद्धार।।


धरती माता की खोज में निकले तब वराह रूप में विष्णु जी।

इधर विष्णु की खोज में पीछे-पीछे चल पड़ा हिरण्याक्ष भी।।


देखा पृथ्वी को लेकर समुद्र तल से ऊपर आ रहा एक वराह।

ललकार बैठा हिरण्याक्ष युद्ध करो नहीं जा सकते इस तरह।।


अभिमानी हिरण्याक्ष समझ न पाया वराह रूप श्रीविष्णु को।

युद्ध के लिए आमंत्रित कर दिया उसने स्वयं अपने काल को।।


भीषण युद्ध छिड़ा था तब दोनों में हिरण्याक्ष का संहार हुआ।

खुरों से जल को स्तंभित कर वहीं धरती को स्थापित किया।।


पृथ्वी को स्थापित कर भगवान वराह वही हो गए अंतर्ध्यान।

अधर्म का नाश करने हेतु वराह रूप में आए विष्णु भगवान।।



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