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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

4.5  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

प्रवास

प्रवास

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किसी भी कारण के प्रभाव से

किसी का बदले जब क्षेत्र निवास।

इस स्थान परिवर्तन की अवधारणा

को हम सब ही कहते हैं प्रवास।


जो कारक सोचते हैं हम प्रवास के

तो इनके मुख्य संवर्ग बनते हैं दो।

प्रतिकर्ष कारक होता छुड़वाने का

और अपकर्ष तो आकर्षण का हो।


गर प्रवास की अवधि को ध्यान रख

जो करते हम प्रवास पर हैं विचार।

स्थाई, अस्थाई और मौसमी नाम से

प्रवास के तब तो होवेंगे तीन प्रकार।


नयी जगह पर आने वाले जन तो

आप्रवासी लोग कहलाए जाते हैं।

उत्प्रवासी हम कहते हैं उन सबको

जो निज ठांव को छोड़कर जाते हैं।


सामान्य रूप

से दो तरह के

प्रवास को माना जाता है खास।

दूसरे देश में जाना अंतर्राष्ट्रीय है

एक ही देश में है आंतरिक प्रवास।


आंतरिक प्रवास के अंतर्गत होती 

चार धाराएं होंगी जब बदलेगा ठांव

गांव से गांव को,नगर में नगर से,

गांव से नगर में और नगर से गांव।


परिवर्तन तो शाश्वत है सत्य जगत का

सकारी - नकारी होता इसका प्रभाव।

नियोजन-विवेक-परिस्थिति आधारित

नहीं है इसमें कोई भी तनिक दुराव।


विवेकशीलता संग नियोजन हो और

जो अनुकूल परिस्थितियां भी हैं होती।

'अयोध्या' की 'एक बूंद' छोड़ गेह निज

 सीप मुख में पहुंचकर बन जाती है मोती।


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