यौवन विराम
यौवन विराम
चक्रव्यूह को चकनाचूर किया
महारथियों का मद दूर किया,
'विष्णु'-जैसा पराक्रमी
मधुसूदन को मशहूर किया।
विंध्य-भाँति अडिग रहा
शत्रु को अधीर किया,
मृग-नयन का बन्दी वो
इतिहास में न जाने कब अमर हुआ?
भरत वंश का लाज था जो
चिर-हरण का शिकार हुआ,
लेने बदला अपमान का
उजड़े केश के मिटे सम्मान का
सौभद्रे का खड्ग धार हुआ।
चुका न कोई चाकरी कर,
टिका जो भी ,हुआ तितर-बितर।
गांडीव का याद दिलाया जब,
महारथियों को युद्ध सीखाया तब।
सौ-सौ वीर पे भारी था,
सुदर्शन का आज्ञाकारी था।
नाक मे दम करना
जिसकाे एकमात्र बीमारी था।
कायरता के परिचय से
कुरूक्षेत्र जब लजाया था,
दुर्भाग्य नव भारत का,
जब वो खून से नहाया था।