एक ख्वाब हो ...कि...बस टूटना हो
एक ख्वाब हो ...कि...बस टूटना हो
हो शून्य तू
न नगण्य तू
हो भ्रमरहित
न भयसहित
जो है अंध यहाँ
हो द्युति तू
जो हो मंद कोई
बन गति तू
जो है रंध्र कहीं
बन बाधा तू
जो हार गया
न आधा हो
जो दे जीत कहीं
वो साधा कर
जो टूट गया
वो जोड़ दे
जो है तोड़ता
वो छोड़ दे
न छूट जाये तू
ये ध्यान कर
न मिट जाए तू
ये संज्ञान कर
न जंग में हो
न संग में हो
हो, बस एक रंग में हो
जो पैगाम दे
अमन का हो
जो जान दे
वो जानता हो
जो जमीं से जुड़े
गगन को भी चूमता हो।
बस ख्वाब हो
कि टूटना हो
न आबाद हो
न कोई संवाद हो।
