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Aditya Anand

Tragedy

4  

Aditya Anand

Tragedy

वर्तमान-वर्णन

वर्तमान-वर्णन

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विन्ध का कद बौना पड़ा

हिम भी सर्द, औंधा पड़ा ,

पड़ा रहा किसी कोने में 

भयभीत, कहीं चित्कार कर।

छूटा , टूटा समन्वय सारा 

सोता ,रोता रहा जग सारा ,

चिर चीर , बुलावा भेजा जो 

अंबर खंडित होना चाहा ,

धरा ,धरा न रह जाए 

व्यर्थ हीं व्यथा क्यों सीना चाहा।

जो रंध्र कहीँ है बंद होने वाले 

एकाध बार सून होने वाले 

सौ-सौ रण का भार वो 

बोलो, कब तक सहने वाले ?


और प्रश्न आएँगे, 

भ्रमित, मन कर जाएँगे 

गीत-गगन को झुमाने वाले 

मौन , स्थिर व अटल 

जग को कैसे न हँसाएगें?

न हर्ष के दिन हैं ये 

न विषाद पे सब ठीक हुआ है 

ठिठक गए हैं वो भी ये जानकर, 

कि जो हुआ फिर न है होने वाला

बस कुछ पल को लगा

शायद कुछ अधिक हुआ है।


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