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Aditya Anand

Abstract Classics

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Aditya Anand

Abstract Classics

कलाकार

कलाकार

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ख्वाबो के खफा हो जाने तक

मनका मन से छूने तक

कर एहसान कि 

बेजुबाँ बोल उठे-


"कलाकार जिन्दा है

दिल के अरमान जिन्दा है

तोहफे के तहजीब मे

वो इम्तिहान जिन्दा है, 

जिन्दा है तो 

वो चाह ,

कलाकार होने की 

कलम से अलंकार चुराने की।


क्या करे,

कलाकार मरता ही नही

पंखुड़ियों जैसा पतझड़ मे 

कदमों तले अब दबता नहीं

हर पल इक शुरूआत को

जुटने से चूकता नहीं।


यही जिद है,

इस जिद मे जिंदा है,

सलामी करता बंदा है

सलामत रहने तक

बस दुआओं मे जिन्दा है।

हाँ! कलाकार जिन्दा है,

दिल के अरमान जिन्दा है।


मोह के तार टूटने पे

ख्वाबो के बाजार लुटने पे

नजर ढूढ रही लुटेरे को

फिर भी 

एक आशा है

तनिक पियासा है

बस घूँट-घूँट 'हासिल' करने को 

कलाबाजी तक

कोई अपना जिन्दा है,

एक सपना जिन्दा है।


तस्वीर में,

अखबार के

गली- कूचों से जुड़े

दिल के तार पे,

कभी मुस्काती आँख मे

कही मशान के राख मे

एक भ्रम जिन्दा है कि

कलाकार जिन्दा है।

कला का अवतार जिन्दा है ?"


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