लम्हें.....वक्त की ओर एक सफर
लम्हें.....वक्त की ओर एक सफर
एकाध जगह
सुवर्ण-जड़ित सितारा पाया ,
परों की खोज में
बस परछाई का सहारा पाया ।
अनमने मन से
जब तिनकों से भी मिलना चाहा ,
वक्त की जोर पे
हमने खुद को किनारा पाया।
आदतें भी बेजोड़ होने लगी
कभी पंखुड़ियाँ ,तो कभी फूल ने
पतझड़ पे अनजान पहरा पाया ।
शुक्र है कि ये सफर है
नहीं तो ठहरे लम्हों में ,
हमने कितनों को बेसहारा पाया ।