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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Classics

# आओ आसमां के पार चले #=====

# आओ आसमां के पार चले #=====

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चलो साथी उमंग के पंख के संग 

तैैर चले अनंत ऊँचाई की ओर

हसरतेें हिलोर लेती हैं

संंगी सूरज के संग हो।


देेखे पल पल बदलते उनके

अलौकिक सब अलबेले रंग,

चल चल मन मनचले

आसमां के पार चले।


परख लेते पास से उनको

गम कैैसे सीने में पल रहे

क्यूँ धधक धधक यूँ जल रहे,

खबर देता उनको


ऐसे तो धूँ धूँ हम ही भूने जले,

चल चल मन मनचले

आसमां के पार चले।


पश्चिम की तरफ बढते

सधे सधे जब उनके कदम

परवान भरते खग जनो को

कर देता इस कदर बेदम

चल पड़ते थके कदम


उस सजीले ओट की ओर

जहाँ अपनो संग पले बढे,

चल चल मन मनचले

आसमां के पार चले।


सरसराया अंधेरे का साया

गुुम हुुआ तेज उनका सारा

लुुुुप्त हुआ प्रदीप्त उनकी काया

चाँद तारों का मंजर ऐसा छाया,


समय की कलाकारी यह

रग रग में छन छन ढले,

चल चल मन मनचले

आसमांं के पार चले।


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