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Satish Chandra Pandey

Classics

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Satish Chandra Pandey

Classics

हिलोरें उठने दे

हिलोरें उठने दे

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रागिनी गा दे

या गाए बिना सुना दे

भीतर है जो उबाल

उसे बाहर निकलने दे।


मन की जुल्फों को उलझने दे

दिल की लगी को चारों ओर

बिखरने दे।


उसकी तपिश से बर्फ पिघलने दे।

हिलोरे उठने दे,

फलों की मिठास बढ़ने दे,

अपनेपन का अहसास होने दे

खुशी के आंसू रोने दे,

अधखिले फूल खिलने दे।


त्रिपुट में लगाने को

जरा चन्दन घिसने दे,

ठण्ड में अधिक ठंड का

अहसाह करने दे,

यूँ जकड़े न रह

जरा हिलने-डुलने दे।


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