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Ravindra Lalas

Abstract Classics Inspirational

4.3  

Ravindra Lalas

Abstract Classics Inspirational

आकाश

आकाश

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This poem is inspired & approximate translation of poem by Anupa Chougule


एक उम्र से, एक मुद्दत से,

है जिसको छूने की है आस।


चाहो इसको जितना पास,

उतना ही ऊंचा आभास।


क्यों गगन चूमता है कैलाश?

क्यों खुशी रवि की इतनी खास?


अजय प्रभाकर प्रलय प्रकाश,

अंत अनंत इसके एहसास।


अनूपा आभा, अप्रतिम उल्लास,

कितना संतोष, कितना खास।


इसके आंगन नाद मेघ का,

इंद्रधनुष ज्योति उल्लास।


पंख पंखेरू प्राण प्रदीप, 

कार्तिकेय हैं इसके पास


कितना कुछ ये हमें सिखाता,

असीमित सीमा की आस!


असीम लक्ष्थ सा हमें लुभाता,

जय हार का संगम और व्यास !


गगन चुमने को मन ध्याता,

प्रचंड वेग सावन की सांस!


हर्षपूर्ण को हृदय लगालो,

क्षण सुंदर ये सौम्य सुहास।

 

अंतहीन की अथाह आङ में,

बह्म ज्ञान का अलख उजास।


रंगो की रुहानी रौनक,

अंधकार के संग प्रकाश,


शुन्य में लिप्त अनंत अरदास,

शुन्य में लिप्त अनंत आकाश।


एक उम्र से, एक मुद्दत से,

है इसको छूने की है आस।


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