कहानी यों के!
कहानी यों के!
कहानी यों के,
सिलसिले,
और किस्से भी,
कुछ कम न थे!
बहाने बातों के,
वो कहकहे,
कहने को,
कोई गम न थे।
मंज़र कुछ ऐसे,
थे काफिले,
और हिस्से भी,
बस हम न थे!
कोने आंखों के,
वो हंसने वाले,
कैसे कहें,
की नम न थे?
शिकवे वो के,
उससे भी, इससे भी,
पर लम्हे यों,
बेरहम न थे!
जवानी जो की,
दिल के हवाले,
तो ख्वाहिशों के,
मौसम न थे!
रवानी यों के,
जब दिल मिले, जिससे भी,
मिलने को बस,
हमदम न थे!
हैरानी वो के,
जो साहिल मिले,
बढ़ने को राज़ी,
कदम न थे।
फिर चाँद भीगा,
चाँदनी में,
जब खास उसके
हम न थे।
कहानी यों के,
सिलसिले,
और किस्से भी,
कुछ, कम न थे!