अर्जुन या सुदामा सा स्नेह पाऊँ
अर्जुन या सुदामा सा स्नेह पाऊँ
कृष्ण बने वो हर युग के, सच्चे दोस्तों का मिला दोस्ताना,
एक दोस्त था धनुर्धर अर्जुन, दूसरा सखा था मित्र सुदामा।
बहुत स्नेह था उन्हें दोनों से, थे वो सारथी वीर अर्जुन के,
सच्चा दोस्त था दूसरा, सुदामा थे प्रिय सखा बचपन के।
हे मोहन तुम्हीं बताओ, कैसे मिला सखा तुम्हें अर्जुन सा,
मोह पाश में बंधे अर्जुन को, पाठ पढ़ाया तुमने गीता का।
समर भूमि में दिशाहीन अर्जुन को, सच्चाई का पाठ पढ़ाया,
रिश्तों नातों से हटाकर, विश्व के भले का मार्ग था बताया।
अर्जुन थे महान कर्म योगी, कर्तव्य निष्ठा में कोई न सानी,
मोहित हुए कृष्ण अर्जुन पर, पावन थी ये दोस्ती की कहानी।
अर्जुन की भार्या थी द्रौपदी, कृष्ण द्रौपदी का पावन रिश्ता,
भरे दरबार में बचाया उन्हें, कृष्ण ने निभाया भाई का नाता।
सारे जग के हो तुम पालनहार, बन गये रण भूमि में सारथी,
तुम्हारे ही दिशा निर्देशन में, अर्जुन ने मार गिराए महारथी।
कृष्ण अर्जुन की इस दोस्ती का, देवताओं ने भी लोहा माना,
इस गहरी दोस्ती का राज, जग में आज तक कोई न जाना।
कृष्ण और सुदामा की दोस्ती, थी दोस्ती में अलग नजराना,
चने न दिए मोहन को खाने, खा गये सारे अकेले सुदामा।
शापित थे चने ब्राह्मणी द्वारा, सुदामा जन्म से ब्रह्मज्ञानी,
मित्रता के लिए अपनाई गरीबी, थी जो उन्हें दोस्ती निभानी।
वर्षों बाद आए सुदामा, खबर मिली द्वारिकाधीश कृष्ण को,
नंगे पाँव भागे बाहर, मिलने को थे उत्सुक मित्र सुदामा को।
न कोई छोटा, न कोई बड़ा, राजा पद का न था उन्हें गुमान,
नमन करता हूँ ऐसी मित्रता को, करूँ इस रिश्ते को प्रणाम।
काश आज भी ऐसे सखा होते, सार्थक ये जीवन हो जाता,
आज तो रिश्ते हुए बेमानी, भाई भी निभाता नहीं है नाता।
एक रिश्ता कृष्ण अर्जुन का, दूसरे रिश्ते में सखा सुदामा,
कहाँ मिलते दोस्त इन सरीखे, बदल गया सारा ये जमाना।
मेरा भी बहुत मन करता है, कि थोड़ा तो कान्हा बन जाऊँ,
इस जीवन में एक ही बार, अर्जुन सुदामा से मित्र पा जाऊँ।
सभी रिश्तों के ऊपर मित्रता, सच्चे मन से दोस्ती निभाऊँ,
एक बार कान्हा बन पाऊँ, एक बार अर्जुन सुदामा को पाऊँ।