किताबें बोलतीं हैं !
किताबें बोलतीं हैं !
मुझे आज भी याद हैं
बरसात का मौसम था,
college का नया session शुरू ही हुआ था,
रोज़ की तरह canteen पे दोस्तों का अड्डा
चाचा - "please ४ चाय और ब्रेड पकोड़ा "
Canteen - वोह जगह जो boys का था favorite
वहाँ से हर कोने का angle था एकदम right
Lab हो या library, music या कोई चमकती light
एक नज़र के survey में दिल हो जाता था delight
उस दिन बारिश का अलग ही रुख था
जब मैंने उसे पहली नज़र देखा था
पिले रंग का सूट और red बाँधनी दुपट्टा,
Almost भीगी हुई थी उसकी हर अदा
शायद वह लाइब्रेरी से बाहर के
gate तक जाना चाह रही थी
कुछ और न सोचा, बस bike start
करी और सीधे उसके सामने खड़ी कर दी।
बस एक smile के बदले प्यारी मुस्कराहट थी
उसने अपने हाथ की "किताब "
पकड़ाई और वह pillion सीट पर थी
अब शायद थोड़ी दोस्ती हो गयी थी
इशारों की ही सही, बातें बस आँखों की ही थी
पर एक सिलसिला जो अक्सर था
वो मुझे एक "किताब" almost हर हफ्ते देती थी
अब तक मेरे रूम की कांच वाली
अलमारी उसकी किताबों से भर गयी थी
उस समय मेरी ख़ुशी बस उससे मिलने में थी
हर Sunday का इंतेज़ार, चाय पकौड़े में मिलना
मुस्कुराहट भरी नज़रों से एक दुसरे को निहारना
और उससे एक "किताब" ले कर वापिस आना
समय की सुई आगे बढ़ती रही
Silent मोहब्बत का का सिलसिला चलता रहा
एक दिन अचानक उसका college आना बंद हो गया
दिल बेचैन था, आंखें परेशान थी
न पता था न कोई mobile number
दिल में सवाल और मन ने ढूंढने की कोशिश बहुत की
पर ज़िन्दगी की गाड़ी आगे बढ़ती चली गयी
college से job, job से ऑस्ट्रेलिया तक
शादी भी हो गयी और एक प्यारी बिटिया भी
पर कहीं एक दिल के कोने में थी एक कसक।
आज करीब २० साल बाद वापिस हूँ अपने घर
वो किताबें आज भी वहीं अलमारी में थी बेखबर
देख रही थी उन्हें म
ेरे सवालों भरे चश्में की नज़र
जाग उठी थी शायद उस अनकहे मोहब्बत की कहर
बेटी ने मीठे स्वर में पुछा -
पापा, यह किताबें आपकी हैं ?
मैंने बस सर हिलाया और उसके सर पर
मुस्कुराते हुए हाथ फेर के वापिस मूढ़ गया
दिल शायद सम्हाल गया था
मन रुक गया था
"पापा।
यह Priya कौन है ?"
मेरी आखें अचानक भर गयी
मन में उथल पुथल मच गयी
धड़कने तेज़ हो गयी
कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हुई
सारी किताबें बिखेर डाली, हाथ मेरे थरथरा रहे थे
जिन्हे आज तक खोला भी नहीं था, उसके हर पन्ने पलटने लगे थे
"आज तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा - तुम्हारी Priya"
"तुम आज मेरे सपनों में आये - तुम्हारी Priya"
हर एक किताब में उसका इज़हारे मोहब्बत था
आज आँखें मेरे बहते हुए आंसुओं को रोक न सका
आज तक मेरे हर सवाल का जवाब इन किताबों में ही छुपा था
मैं अनपढ़ आज तक इन किताबों को पढ़ न सका
"तुम रोज़ मिलते हो पर कुछ कहते नहीं - तुम्हारी Priya"
"मुझे शायद तुमसे प्यार होने लगा हैं - तुम्हारी Priya"
"कल मुझे लड़के वाले देखने आये थे - तुम्हारी Priya"
"मेरी शादी तय हो गयी है, आगे से मिलना मुश्किल होगा,
तुम्हें बहुत miss करूँगी - तुम्हारी Priya"
"आज मेरा final अलविदा, कल मेरी शादी है,
अगर सो सके तो call करना, तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी - Love Priya"
मेरी धड़कनें रुक सी गयी थी
थरथराते हाथों से phone पे number दबाए
आज दिल बिलकुल बेकाबू था
दिमाग बिल्कुल सुन्न था
एक बार उसकी आवाज़ सुनने का मन था
दस्तक तो दी थी किताबों ने
मैं ही अबोध, मोहब्बत से भरी किताबों को पढ़ न सका
उधर से आवाज़ आयी -
"Priya"
"हाँ , आप कौन ?"
"किताबों की कहानी को आज पढ़ा मैंने
मेरी बेवकूफियों को और सालों की
मोहब्बत को माफ़ कर सकोगी ?"
आज फिर से वो चुप थी
पर मेरे कानो में उसकी सिसकियाँ गूँज रही थी
किताबें भी बोलती हैं।
दिल की आवाज़ किताबें ही समझती हैं।