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Jhimli Parui

Romance

4  

Jhimli Parui

Romance

किताबें बोलतीं हैं !

किताबें बोलतीं हैं !

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मुझे आज भी याद हैं

बरसात का मौसम था, 

college का नया session शुरू ही हुआ था,

रोज़ की तरह canteen पे दोस्तों का अड्डा

चाचा - "please ४ चाय और ब्रेड पकोड़ा "


Canteen - वोह जगह जो boys का था favorite 

वहाँ से हर कोने का angle था एकदम right 

Lab हो या library, music या कोई चमकती light 

एक नज़र के survey में दिल हो जाता था delight 


उस दिन बारिश का अलग ही रुख था

जब मैंने उसे पहली नज़र देखा था

पिले रंग का सूट और red बाँधनी दुपट्टा,

Almost भीगी हुई थी उसकी हर अदा


शायद वह लाइब्रेरी से बाहर के

gate तक जाना चाह रही थी 

कुछ और न सोचा, बस bike start

करी और सीधे उसके सामने खड़ी कर दी। 


बस एक smile के बदले प्यारी मुस्कराहट थी 

उसने अपने हाथ की "किताब "

पकड़ाई और वह pillion सीट पर थी 


अब शायद थोड़ी दोस्ती हो गयी थी 

इशारों की ही सही, बातें बस आँखों की ही थी 

पर एक सिलसिला जो अक्सर था 


वो मुझे एक "किताब" almost हर हफ्ते देती थी 

अब तक मेरे रूम की कांच वाली

अलमारी उसकी किताबों से भर गयी थी 

उस समय मेरी ख़ुशी बस उससे मिलने में थी 


हर Sunday का इंतेज़ार, चाय पकौड़े में मिलना 

मुस्कुराहट भरी नज़रों से एक दुसरे को निहारना 

और उससे एक "किताब" ले कर वापिस आना


समय की सुई आगे बढ़ती रही

Silent मोहब्बत का का सिलसिला चलता रहा

एक दिन अचानक उसका college आना बंद हो गया

दिल बेचैन था, आंखें परेशान थी

न पता था न कोई mobile number


दिल में सवाल और मन ने ढूंढने की कोशिश बहुत की

पर ज़िन्दगी की गाड़ी आगे बढ़ती चली गयी

college से job, job से ऑस्ट्रेलिया तक 

शादी भी हो गयी और एक प्यारी बिटिया भी

पर कहीं एक दिल के कोने में थी एक कसक। 



आज करीब २० साल बाद वापिस हूँ अपने घर 

वो किताबें आज भी वहीं अलमारी में थी बेखबर 

देख रही थी उन्हें म

ेरे सवालों भरे चश्में की नज़र 

जाग उठी थी शायद उस अनकहे मोहब्बत की कहर 

बेटी ने मीठे स्वर में पुछा -

पापा, यह किताबें आपकी हैं ?

मैंने बस सर हिलाया और उसके सर पर

मुस्कुराते हुए हाथ फेर के वापिस मूढ़ गया


दिल शायद सम्हाल गया था

मन रुक गया था

"पापा।

यह Priya कौन है ?"

मेरी आखें अचानक भर गयी

मन में उथल पुथल मच गयी

धड़कने तेज़ हो गयी

कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हुई


सारी किताबें बिखेर डाली, हाथ मेरे थरथरा रहे थे 

जिन्हे आज तक खोला भी नहीं था, उसके हर पन्ने पलटने लगे थे 

"आज तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा - तुम्हारी Priya"

"तुम आज मेरे सपनों में आये - तुम्हारी Priya"


हर एक किताब में उसका इज़हारे मोहब्बत था 

आज आँखें मेरे बहते हुए आंसुओं को रोक न सका  

आज तक मेरे हर सवाल का जवाब इन किताबों में ही छुपा था 

मैं अनपढ़ आज तक इन किताबों को पढ़ न सका 


"तुम रोज़ मिलते हो पर कुछ कहते नहीं - तुम्हारी Priya"

"मुझे शायद तुमसे प्यार होने लगा हैं - तुम्हारी Priya"

"कल मुझे लड़के वाले देखने आये थे - तुम्हारी Priya"

"मेरी शादी तय हो गयी है, आगे से मिलना मुश्किल होगा,

तुम्हें बहुत miss करूँगी - तुम्हारी Priya"

"आज मेरा final अलविदा, कल मेरी शादी है,

अगर सो सके तो call करना, तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी - Love Priya"


मेरी धड़कनें रुक सी गयी थी

थरथराते हाथों से phone पे number दबाए 

आज दिल बिलकुल बेकाबू था

दिमाग बिल्कुल सुन्न था

एक बार उसकी आवाज़ सुनने का मन था

दस्तक तो दी थी किताबों ने

मैं ही अबोध, मोहब्बत से भरी किताबों को पढ़ न सका


उधर से आवाज़ आयी -

"Priya"

"हाँ , आप कौन ?"

"किताबों की कहानी को आज पढ़ा मैंने

मेरी बेवकूफियों को और सालों की

मोहब्बत को माफ़ कर सकोगी ?"


आज फिर से वो चुप थी

पर मेरे कानो में उसकी सिसकियाँ गूँज रही थी 

किताबें भी बोलती हैं।

दिल की आवाज़ किताबें ही समझती हैं।


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