वो राही कहीं ना दिखता
वो राही कहीं ना दिखता
राहियों को तो तकता जाऊं,
वो राही कहीं ना दिखता है।।
उस राह ने भी हार मान ली,
कह दिया उसने मुझसे अब !
उनके कदम इधर नहीं टिकता है।
राहियों को तों तकता जाऊं,
वो राही कहीं ना दिखता है।
अधूरे से राह में बिछड़े,
या चलना उसने छोड़ दिया।
जो बातें पूछना चाहू मैं उनसे,
वो बातें राहें ही हमें पूछ जाते हैं।
राहियों को तों तकता जाऊं,
वो राही कहीं ना दिखता है।
साथ चल रहे थे मेरे,
ये बातें तो सिर्फ मैं जानता हूं।
उसने मन से मन को मेरे,
पकड़ा था या नहीं !
इन बातों मैं उलझता हूं।
राहियों को तो तकता जाऊं,
वो राही कहीं ना दिखता है।

