देश के दहलीज पर चलें
देश के दहलीज पर चलें
जिन मिट्टी के हैं उगे फसल
हम उन मिट्टी के होने चले ....
मैं चला उसे रोकने
जो देश के दहलीज पर
आकर हैं खड़े...
खेतों से कभी आवाजें दे पिताजी
तो मेरे ना रहते भी..
मेरे नाम की हाजिरी लगा देना...
माताजी की उदासी बढ़ेगी
मेरे बारे में सोच सोच कर..
बस कभी फुर्सत मिले
तो मेरे ना रहते भी
उनकी मुस्कुराहट की वजह
बनने की कोशिश करना...
वैसे कह दिया हूं पिताजी को
जैसे फसलों में लगते हैं
कीड़े मकोड़े फसल बिगाड़ने को
वैसे ही हमारे वतन की हरियाली पर
कीड़े मकोड़े की तरह मंडराते रहते हैं दुश्मन...
मैं दवाई बनकर उसे भगाने जा रहा हूं...
और कह दिया हैं मां को भी..
जैसे घर के दरवाजे पे
तू टांगी है ना नींबू-मिर्च
कि बुरी शक्तियां घर में ना आएं...
ठीक वैसे ही मां..
देश के दहलीज पर
पूरे वतन की रक्षा के लिए
मैं वहां खड़ा होने जा रहा हूं....
अगर मेरे बारे में पूछेंगी वो
तो उन तक मेरा ये संदेश पहुंचा देना...
प्रेम मेरा अभी भी उनसे कम हुआ नहीं हैं
और ना ही होगा...
लेकिन उनसे अधिक प्रेम हमेशा रहा हैं
मुझे अपने वतन से..
और मैं अपने पहले प्रेम की रक्षा के लिए
जा रहा हूं....
यारों तुम अपना भी ख्याल रखना
और कोशिशें करना चुपके चुपके
देश को खोखला करने वाले को रोकने की...
ये बाहरी दुश्मन से अधिक घातक हैं..
जिन मिट्टी के हैं उगे फसल
हम उन मिट्टी के होने चले...
मैं चला उसे रोकने
जो देश के दहलीज पर
आकर हैं खड़े.....
जय हिन्द
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय...
