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Prahlad mandal

Abstract Classics

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Prahlad mandal

Abstract Classics

बीते कल

बीते कल

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वक्त के पहरो ने दौड़ लगाई तेज,

ठहर ठहर कर चला परिंदा..

बड़े संघर्षों के बाद,

पहुंच गया मंजिल की ओर।


बीते कल को याद किया जब 

आंखे भर आयी ...

ना मिला वैसा सुकुन 

जो मिला था गांव के गलियारों की ओर।


वो नदियां की जल की आवाजें

गुंजी कानो में और होने लगे शौर।

उन पक्षियों की चहचहाहट से 

मन हो गया विभोर।


जिसमें रहता आत्मा गांव की,

एकांत में बैठकर खो गया उस ओर।

वो सतरंगी पल ना दिखा कहीं

जो था बचपन के बचपना की ओर।।


बीते कल के यादों में 

वो धान के पौध याद आये

उगा कहीं और लगा कहीं...

जिन घर से निकला था उगने

उस घर की तरह 

सत्कार ना हुआ किसी ओर।


वो सतरंगी पल ना दिखा कहीं,

जो था बचपन के बचपना की ओर।


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