वो दिन याद हैं
वो दिन याद हैं
पूरा एक वर्ष बीत गया
अब तों कैलैंडर भी बदलने वाला है...
वो दिन याद है
और शायद हमेशा याद रहेगा
क्योंकि हर दुःख और हर मुश्किलों में
मुस्कुराने का वजह बनकर रहेगा वो पल...
जब कैलैंडर बदलने की खुशी होती थी और
एक उमंग रहता था नया साल आएगा
पिकनिक पर जाएंगे....
फलाने-डिकाने और ना जाने कितने उमंगे
एक महीना पहले से
आने लगता था मन में..
और तभी लगता था
कितने दिनों के बाद
एक साल आता है...
अब तों ऐसा लगता है कि
कल ही बहुत सारे
वादें किये थे पिछले वर्ष में
आने वाले वाले नए वर्ष से
कि तुझमें ही ठहरकर कुछ
वजूद बनाना है..
जो चाह है उसे पाना है
उम्मीदों को विश्वास दिलाना है
सपने को हकीकत कर जाना है
हमें तों अब भी लग रहा है
इतना जल्दी एक वर्ष खत्म नहीं हो सकता...
हां शायद हो सकता है कि
उलझनों में दिन-रात का पता नहीं चलता है..
अगर ये बात सही है
तों कैलेंडर का बदलना विश्वास
सा लग सकता है....
मुझे अब भी यकीन नहीं है
एक वर्ष का इतने तेजी से भाग जाना..
जो बीता सो बीता अब दबते उम्मीदों को
सहारा देकर उठाना है....
टूटे सपने को खुद से हौसला देकर
जोड़ना है ..
ये आसान नहीं है फिर भी कोशिशें
करना है...
वक्त के साथ बहुत कुछ बदला
अब आने वाले वर्ष को पिछले वर्ष से
अधिक मजबूत वाला वादा देना है..
इस बार समझ लो उलझनों में
घड़ी की सुई नहीं रूकता है..
बस रूकता है तो
उलझन में फसने वाला..
इसलिए जैसे भी हों तुम्हें खुद से वादा करना है...
