परिस्थितियां
परिस्थितियां
उस वक्त को ले लो साथ
जो वक्त नहीं
बुरे हालातों से जुड़े हो
फिर चल पड़ो अजनबी ठिकानों में
बिल्कुल जहां शोर ना हो
नदी के तट पर..
निहारना शुरू कर दो
उन बहती पत्तियों की ओर
जो टूटकर चल रहें हैं..
नदियों की धार में
एकटक देखोगे तो लगेगा
पत्तियां भी मुस्कुराते हुए बह रहीं हैं
उसमें फिकर ना दिखेगा
कि टूटे तो फिर टूटे क्यों!!
उसमें फिकर ना दिखेगा
हवा ने तोड़ी या फिर
किसी चिड़िया के बैठने से
या फिर कोई मनुष्य या जानवर तोड़ा।
और वृक्ष उसी नदी का पानी सोख
नई पत्तियां लाता हैं...
और टहनियां भी नए लाते रहता है।
बिल्कुल वैसे ही कुछ वक्त
कुछ खराब कर जाते हैं
और जो खराब होता वो कभी
पूछें मुड़ कर नहीं देखता ..
बहते चले जाता हैं
नदी के उन पत्तियों के तरह
बस खुद को संभाल कर
जिन वक्त में खराब परिस्थितियों आयी
उसी वक्त से अच्छे और बहुत अच्छे भी
परिस्थितियां ला सकते हैं...
