तुम बकवास हो
तुम बकवास हो
जब कहा था
किसी ने मुझसे
तुम राग हो ,
अनुराग हो ,
तुम प्रीत हो
तुम चांद हो
मैं तेरा तलबगार हूं ....
हर बार मैंने
समझा था के
ये सब फिजूल
का बकवास है
कहां वो अर्श हैं मैं फर्श हूं
आसमां के हैं चांद वो
मैं धरा की खाक हूं
कहां होगा ? कैसे होगा ?
धरती अंबर का मेल भला
मोती जड़ें वो शब्द शब्द
अलंकृत किया मुझको सदा
पर यकीन नहीं मुझको हुआ
क्योंकि वो कहां और मैं कहां ?
सौम्य शक्ल, मुस्कान मधुर
लफ्जों से टपके शहद शहद
मेरी तीखी वाणी जग जाहिर
जलेबी सी सीधी मैं ठहरी
भोले भाले मुखड़े पर उनके
दो नयन सजे थे मतवाले
चढ़ी रहती मेरी भौं तनी
मानो पल भर में जहर उगली
वो शांत शीतल मनभावन से
मैं उदंड प्रचंड तुफानी थी
वो घंटों मौन साधे रहते
मैं पल में लाखो प्रश्न करती
कैसे हो हमारा मेल कभी
हम विपरीत दिशा के मुसाफिर थें
आंखों में उनके गहरा सागर
मैं बहती जैसे पगली नदी
थक हार कर उन्होंने आज कहा
"तुम तो बस बकवास हो ......!"
जब प्रेम का मोल नहीं समझा
हर सत्य को मैंने झूठ कहा
आज झूठ जो उन्होंने बोला है
फिर इसको सत्य कैसे समझूं ?
मैं इसको सत्य कैसे मानूं ?