तुम्हें चाहने की खता
तुम्हें चाहने की खता


तुम्हें चाहने की खता दिलनशी
कुछ यूं मुकम्मल हुई
कि तुम्हारे बिन घुट के
हर सांस अमल हुई
अब ज़िंदगी जिंदगी लगती है
अब तुम्हारी चाहत ना बंदगी लगती है
अब लगता हैं हर रंजिश से रिहा है
अब दिल ने ज़िंदगी को हां कहा है
अब नहीं कोई मलाल की तुम नहीं
अब दिल मुझसे यूं गुमसुम नहीं
तू याद है मगर याद में नहीं
दुआ में शामिल है फरियाद में नहीं
तेरा होना ना होना अब इस से क्या होना
ना तेरे बिन मायूस ना दिल तुझसे शाद है
अब अपना सा लगता है ज़मी आसमा
सपना सा लगता है कभी तेरा होना
तुझसे ना तकरार कभी ना अब शिकायत है
यू लगता तेरा होना कि कुछ पहचानी रिवायत है
अब तुम्हारा हिज्र नहीं मनाता
दिल तुम्हारे नगमे नहीं सुनाता
दिल से अपनाया था दिल से अलविदा है
हां.. इस दिल की मंजिल तुमसे जुदा है
तुम्हें चाहने की खता दिलनशी
कुछ यूं मुकम्मल हुई
कि तुम्हारे बिन घुट के
हर सांस अमल हुई।