वीरानियाँ
वीरानियाँ


तेरे इश्क़ में दिल कर बैठा है नादानियाँ
बिखरी मेरे गुलशन में ये कैसी वीरानियाँ
नश्तर जफ़ाओं का दिल के पार हो गया
ख़ामोश होकर रह गई रूह की सिसकियाँ
अलम-ए-मोहब्बत कुछ ऐसा हमें मिला
चल पड़ी है मेरे साथ अब मेरी तन्हाइयाँ
भीगी हुई पलकों पर तेरे ख़याल हैं ठहरे
आँखों मे छाई है आँसुओं की बदलियाँ
पशेमां हुए हैं फ़रिश्ते भी आज तुझ पर
उनके चेहरे पर है आई कितनी हैरानियाँ
करना है इंसाफ़ बन मुंसिफ़ मेरे दर्द का
अदालत में कब होगी दिल की सुनवाइयाँ
इन वीरानियों के बदले तुम बदल जाओ ग़र
नशात हर नफ़स मेरी दूर हो हर रंज-ओ-गम
मिट जाए ख़्वाबों से तब ज़ख़्म की निशानियाँ
न रहे ज़िंदगी के गुलशन में अब ये वीरानियाँ।