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ARVIND KUMAR SINGH

Inspirational

4.5  

ARVIND KUMAR SINGH

Inspirational

जुल्म की बदलियों

जुल्म की बदलियों

1 min
265



ऐ जुल्म की बदलियो मत जुर्रत करो 

मेरे देश की सरहद पर मंडराने की 

दिखते हैं हम शांत, मगर नहीं हिम्मत 

तूफान में भी हम से टकराने की 


पानी बना जो लहू न होता 

गैरत थोड़ी भी जो होती बाकी 

तो बार बार मुंह की खाकर भी तुम्‍हारी

मजाल क्या थी हमें मुंह दिखाने की 


कई बार माफ किया तुमको

अब और ना बर्दाश्त करेंगे हम 

नामो-निशां तक मिट जाएगा

ऐसी सजा देंगे सरहद में आने की


बियां बांयीं से बचाने शहरों को अपने

लाओगे कब तक किराए की गर्दने 

यहां तो होड़ लगी है करोड़ों की 

जमीं-ए-हिंद की खातिर सिर कटाने की


राजनीतिक प्रपंचों तले रौंदने दो शहादत को 

गम नहीं कोई वतन परस्ती के मतवालों को 

चीख उठेंगी उनके लहू की बूंदे 

गर किसी ने सोचा तिरंगे को झुकाने की.


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