न टूटूँगी
न टूटूँगी
ज़िन्दगी में न टूटूँगी, न बिखरूँगी
माना अन्दर से टूटी हूँ, बिखरी हूँ।
पर फिर भी हिम्मत रखती हूँ
आगे बढ़ने की,
जीवन में कुछ करने की ।
जननी हूँ , मैं संघर्ष की
तभी तो उत्पत्ति हुई संतान की।
मेरा तप, मेरा समर्पण है
मेरी आराधना बरसों की।
ये मेेेरा विश्वास है
जीत होगी मेरे विश्वास की।
डटी रहूँगी,
जब तक सुबह न होगी
मेेेेरी सुताओं की ।
ये बात नहीं है हार-जीत की,
ये वार्ता है स्त्री के सम्मान की ,
उस के अभियान की।
कसम है उन अश्रों की
जो बहए उन मासूम नयनों से
जिन की उम्र थी मुस्कान की।
ज़िन्दगी में न टूटूूँगी, न बिखरूँगी
चाहे प्रलय आए किसी जहान की।