उन्नति का दीप जलाता हूं !
उन्नति का दीप जलाता हूं !
आंधी को जब भी अवसर मिलता हैं,
मुझे तोड़ने से एक पल भी न चुकता हैं,
मेरे हिर्दय की देख हुंकार साथ चलता हैं,
पूछने पर कहता तेरे साथ सुकून मिलता हैं !
भला मेरा कौन यहां साथ निभाता हैं,
पूरी दुनिया मुझे दूर जानें को ही कहता हैं,
मेरे बगैर कहां कोई सबक सीख पाता हैं,
ज़िंदगी जीने के नयाब तरीके अपनाता हैं !
मेरे ही प्रहार से सफ़लता का शीर्ष पाता हैं,
यह मानुष जानें क्यों मुझे समझ न पाता हैं,
ख़ुद की हिफाज़त इतना ज़्यादा करता हैं,
समझदार मुझे साथ ले आगे बढ़ जाता हैं !
मैं उसकी उन्नति में बाधक न बन पाता हूं,
जिसकी सक्रिय सोच उच्च शीर्ष पर पाता हूं,
जिस मानवता में समग्र संसार का मूल पाता हूं,
उसी ह्रदय में सदा उन्नति का दीप जलाता हूं !