STORYMIRROR

Ruchika Rai

Tragedy

4  

Ruchika Rai

Tragedy

पुराने जख्म

पुराने जख्म

1 min
229

आज फिर जख्मों को कुरेदा,

आज फिर तकलीफ बहुत पाई।

सवाल बहुत थे उन आँखों में,

पर इन आँखों में नमी घिर आई।


ये कैसी किस्मत मिली थी जो,

दूसरों के लिये हिम्मत बनी रही।

बात जब खुद पर आई तो ,

आँखें भरी और जुबान थी लड़खड़ाई।


नही था उन जख्मों को कुरेदना,

नही था पीछे के पन्नो को पलटना,

पर शायद यही नियति थी,

पुरानी बातें कड़वी यादें फिर दुहराई।


ये हँसना मुस्कुराना तो अब बस

फरेब सा ही लगता है।

आँखों के कोर में हो पानी

और तकिया हो गिला,

यही असली कहानी कहता है।


बहुत से दावे बस जुबानी बातें लगती हैं,

बहुत से बातें जो बस

अपनी बेरंग जिंदगानी लगती है।

बस आज कुछ ऐसा ही हुआ,

जख्म को पुराने कुरेदा

दर्द इतना हुआ, बस कोई अपना न लगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy