लम्हा
लम्हा
जहन में आया तेरा खयाल तो रूह खिल उठी
खवाहिशें दबी दबी सी बोल उठीं
चेहरा सूर्ख लाल और आंखें चमक उठीं
गरदन नज़ाकत से कुछ टेढ़ी कुछ झुक उठी,
ये आलम है बस तेरे खयाल भर का
रुबरु आओगे तो क्या हश्र होगा
मेरे जुनून का
ज़रा रूको, थम जाओ, ठहरो ज़रा
मैं होश में आ जाउँ ज़रा
तेरी मौजूदगी का अब ये आलम है
जाड़ों में गरमी और ताप में ठंडक सी लगती है
ये क्या है, कयूँ है, कुछ खबर नहीं
ये सवाल मेरे लिए अब बेमायने से ज्यादा कुछ भी नहीं।

