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Jalpa lalani

Romance

5.0  

Jalpa lalani

Romance

जन्नत

जन्नत

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410


क़ुछ यूँ शुरू हुआ प्यार का अहसास

हर एक दिन जैसे बन गया था खास

उसने प्यार जताने के किये कई प्रयास

हम भी पिघल गये आख़िर वो थे ही दिलकश।


गूँज रहे कानों में गीत उठ रही थी दिल में तरंग

उसने लगाई ऐसी प्रीत मेरी बेरंग सी दुनिया में भर दीये रंग

भूलने लगी मैं अपना अतीत जैसे झूम रही थी उसके संग

हो गई मैं भी मोहित खिल उठा मेरा हरएक अंग।


ख्वाब उसके आने लगे मन पर रहा ना काबू

उसकी साँसों में समाने लगे ऐसा चला उसकी बातों का जादू

भाने लगी हमारी अदाएं वो भी होने लगे बेकाबू

मिट गई दोनों की तन्हाई महसूस हुई जिस्म की खुश्बू।


अब तड़प दोनों की बढ़ गई जैसे प्यासे को मिल गया सागर

प्रेम की ऋतू थी आई बह ने लगी थी प्रेम की धारा

दोनों ने जन्नत पाई मिल गया एक-दुसरे को सहारा

तक़दीर ने भी दे दी गवाही शायद ये था खुदा का इशारा।


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