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Akhtar Ali Shah

Romance

4  

Akhtar Ali Shah

Romance

अनजान सफर

अनजान सफर

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हमसफर बनके कली कोई मुस्कुरा करके, 

मेरे अनजान सफर में बाहरें लाई है।


खेत की मेड़ पे आई है वो इठलाती सी,

चांदनी चारों तरफ हुस्न की फैलाती सी।

नए मेहमान को देती है निमंत्रण पल पल,

दिल की वो धड़कनें हर एक को रिझाती सी। 


राहा के कांटों से दामन को बचाती अपने,

मेरे जीवन के गगन में घटा ही छाई है।

हमसफर बनके काली कोई मुस्कुरा करके,

मेरे अनजान सफर में बाहरें लाई है।


फूल से होठ जो खुलते तो कहर ढाते हैं,

निगाहें उठती तो पैमाने छलक जाते हैं।  

केशराशि जो बिखर जाए दिन में रात करे,

बांहे फैलादें, हाथ जिन्दगी बनाते हैं।


गंध यौवन की उड़ाती वो नशा फैलाती,

मन ही मन स्वप्न देख देख के शर्माई है।

हमसफर बनके कली कोई मुस्कुरा करके,

मेरे अनजान सफर में बहारें लाई है।


हंसी के फूल लुटाती वो डाली फूलों की,

दूर कर देती है पल में चुभन बबूलों की।

वार करती है कमर की वो जल भारी गागर,

जंग में बात कौन करता है उसूलों की।


"अनंत"अंग अंग में वो ले सूरज की चमक,

रानी मधुमास की मधुघट लुटाने आई है।

हमसफर बनके कली कोई मुस्कुरा करके,

मेरे अनजान सफर में बहारें लाई।


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