रहने तो दो
रहने तो दो
पता है न कहोगे तुम तो कुछ कभी
और दिल की बयानी हमको आती नहीं,
सिलसिला दीदार का चलता है यूँ ही
इतने से बेकरारी मगर ये जाती नहीं...
जानकर सभी बातें नासमझ न बनो
और इस कदर बेरुखी भी दिखाते नहीं,
इरादा गुफ्तगू का जो नहीं न सही
बशर्ते नजरों को चुरा ऐसे जाते नहीं...
मुस्कुराहट के सबब को हमारे हुजूर
अपनी वज्में अदाओं से भुलाते नहीं,
उठती हैं निगाहें जो कहने की खातिर
कुछ कहने से पहले गिराते नहीं...
सादगी कम न थी मार देने की खातिर
सज-संवर कर फिर ऐसे आते नहीं,
नजर लगी जो मेरी चिपक जाएगी
इन अदाओं की शोखी दिखाते नहीं...
या तो खूबसूरत तुमको होना न था
या नजाकत से यूँ बल खाते नहीं,
गिरा कर बिजलियॉं अपने बीमार पे
जश्न-ए-फितरत फिर यूँ मनाते नहीं...
जवाँ हो हँसी हो दिलकशीं भी जो हो
कौन है जिसके खयालों में आते नहीं,
एक पल तो हम भी जी लेते कभी
पर तुम हो कि इस दिल से जाते नहीं...
बेचैनी का वास्ता है नजरों से तुम्हारी
कहना जो चाहती है कहने तो दो,
मुद्दतों से खयालों में रहते हो जिनके
कभी उनको भी खयालों में रहने तो दो...

