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Mayank Kumar

Romance

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Mayank Kumar

Romance

कहो, सुनो, फिर बोलो

कहो, सुनो, फिर बोलो

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कहो, सुनो, फिर बोलो

कहां, किधर... मारोगे

सिर में या फिर दिल में ,

बोलो ! किधर मारोगे...


इश्क की मार होती हैं,

बहुत ही दुःखदायी...,

जो लग जाने पर एक बार,

इसका कोई उपचार नहीं..

मौत भी न जल्दी आनी

न आनी कोई महामारी !

कहो, सुनो, फिर बोलो

कहां, किधर... मारोगे


तुम्हारी इश्क सिगरेट-सा था

सुलगाने पर तो सुकून मिलता था,

लेकिन जिंदगी से एक दिन की,

दूरी बना देता था...!

मैं रोज एक माचिस की,

जिंदगी तबाह कर देता था...!

तुम्हें भुलाने के चक्कर में,

उस माचिस की डिबिया का...,

एक-एक करके उसके प्रिय,

चिराग रोज छीना करता था !

इस अपराध के लिए ही बोल रहा हूं

कहो, सुनो, फिर बोलो

कहां, किधर... मारोगे...!!


तुम्हारे चक्कर में मैंने वक्त की हत्या की है,

जिस वक़्त में कई किताबें पढ़नी थी

उन किताबों की कई जिंदगानी सुननी थी

जो मैं नहीं सुन सका,

जो मैं नहीं पढ़ सका..

मेरे कमरे की अलमारी में,

कैद हुए किताबें

अनारकली-सी हो गई हैं...!

अगर वह वक्त लौटा सको ,

तो मुझे लौटा दो तुम ..!

नहीं तो खुद के साथ बिताए

मेरे वक्त के गहनों को पहनकर ,

मेरे पास आ जाओ ..

अगर ! आज भी तुम से ये न हो पाया

तो फिर विनती है तुमसे,

कहो, सुनो, फिर बोलो

कहां, किधर... मारोगे...! !


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