इश्क
इश्क
ये इश्क अजब सी चीज़ है यारों
अजब नज़ारे दिखलाता है
किसी हँसते को कभी रुलाता है
कभी हंसने की वजह बन जाता है
कभी सूखे की बारिश है वो
धरती पर उपजते फूलों सी
कभी बादल की बिजली है वो
कभी जोर की कभी हल्की सी
कभी पतझड़ का मौसम है
कभी पेड़ों की है छाँव
कभी नहरो पर वो बाँध बनीं
कभी नदियों की वो नाँव
कभी पार करें उसूलो को
कहे डर के जीना नहीं हुजूर
कोई माने हर रोक को
सब छोड़े किस्मत पर जो हो मंजूर
कभी रोक में पनपे चाहत बनकर
दिल में मंदिर बन जाता है
बिन पाए अपने मंजिल को
उस मंजिल को ख़ुदा बनाता है
कभी पाकर उस मंजिल को ही
जोग की प्यास बुझाता है
नाम करके चाहत अपनी उसके
खुद भी उसका हो जाता है
ये प्यार ज़माने का अजब है यारों
ज़माना इस पर चलता है
पर मिलने लगे सच्ची मोहब्बत तो
ज़माना सारा जलता है
ये कैसा इश्क है जो ज़माने में
होत अलग कहलाए
ज़माना कहे खुद की,
तब भी ये अपनी ही बात कहाए।।