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Sushmita Singh

Others

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Sushmita Singh

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बचपन के दिन

बचपन के दिन

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बचपन के वो दिन, अब लौट कर नहीं आएँगे

अब इस महंगाई में हम वो सस्ती चाट कहाँ खा पाएँगे

याद तो बहुत आती हैं वो बचपन की अठखेलियां

चाह कर भी जिन्हें हम भुला ना पाएँगे


वो गुठ बना कर लड़कियों की बातें

वो साथ खाए दोस्ती के कसमें-वादे

अब दोस्त भी मिलते हैं जिंदगी के सिग्नल पर तो

बिन पहचाने अपने अपने रास्ते चले जाते हैं


स्कूल में टीचर का पल भर का गुस्सा

और ढेर सारा प्यार

घर में मम्मी-पापा का दुलार

मेरे सारे प्यारे दोस्त या, कहीं छूट गएँ हैं


जिंदगी के इस नदी के पार

आज मंजिल तो है, पर वो राहें ना रहीं

जिन पर चलकर मंजिल को पाना मानो खेल लगता था


आज सब बदल गया है, बचपन की उन अठखेलियों की

जगह टि.वी., विडियो गेम ने ले ली

आज बचपन के हाथों में मोबाइल देखकर मन को कुछ ठेस पहुंची

बचपन को खरीदा जा रहा है खुले आम


इसकी हत्या हो रही है सरे आम

शायद इसलिए ये दुनिया बचपन से अंजान है

अब बच्चो में शरारत तो है

पर वो मासूमियत, वो बचपन कहीं नहीं

कहीं चला गया है हमसे ये बचपन रूठ कर

अब इसके लौट आने की उम्मीद भी नहीं।।


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