।। चाह तेरी।।
।। चाह तेरी।।
बाँह पसारे कब तक देखूँ, इन सूनी राहों पर राह तेरी,
तू ही आकर खुद से कह दे, हम कैसे भूलें चाह तेरी ।
मैंने भी है कितना चाहा, कितना खुद को तड़पाया है,
खुद को झुठला, बन दीवाना सुनता हूं बस आह तेरी ।
हर महफिल की रौनक हूँ मैं, हैं दीवान मेरे मशहूर बड़े,
हुई मुक्कमल ना चाहत मेरी, सुन पाता एक वाह तेरी।
दीदारों और दुआओं की, लुका छुपी ता-उम्र चली थी
उतरा कितने ग़म के सागर, फिर भी ना पाता थाह तेरी।
मैंने चाहत के दीपक और एहसासों की जलती लौ को,
ख़ाक हुआ पर जिन्दा रक्खा, रातें ना हो फिर स्याह तेरी ।
आजमाया कितनों को तूने, अपनी उम्मीदों और चाहत पर,
सच कहूं तो मेरे जितनी, किसी और को है ना परवाह तेरी।
मेरे इश्क की शिद्दत का, तुम हाल भला अब क्या जानो ,
है अरमानों का एक घरौंदा, अधूरी इबादत की गाह तेरी ।
आना है तो आ जाना, जब भी तुझसे मगरूर ज़माना हो,
ना हमने पकड़ी और कोई, खिंची जब से है तुमने बांह तेरी।
कोई आब न कोई हवा मुझको, अब चैनों सुकून दे पाती है,
जान का सौदा भी कर लें, एक मिल जाती जो छांह तेरी।