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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

"लालच बुरी बला"

"लालच बुरी बला"

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लालच होती बहुत बुरी बला है

पर लोग समझते इसे कला है


ईमानदार को सबने ही छला है

लोभी को सब कह रहे भला है


लोभ, ईर्ष्या, प्रलोभनों बाजार में,

आज साखी बहुत ही अकेला है


एक दिन लोभी का कटता गला है

वो स्वर्ण कटारी से पाता सजा है


न चूस सकते, न ही खा सकते है

लोभी होता, वो आम पिलपिला है


लोभ से क्षणिक आनंद मिलता है

सच्चा सुख ईमानदारी से मिला है


उसका हृदय ही होता, निर्मला है

जो लोभ, लालच त्याग चला है


जो रखता है, यहां पर ईमानदारी,

वो बन सकता न कोई भिखारी


चाहे उसके पास धन न मिला है

ईमानदारी से ऊंचा न कोई टीला है


ईमानदार गुणों की वो मंजूषा है

हर र

त्न इसके आगे, छोटा मिला है


बेईमानी राग होता, बहुत बेसुरा है

जबकि ईमानदारी गीत सुरीला है


ईमानदारी लगती, भले करेला है

करती न, मन-मंदिर पर हमला है


अतिलोभ होता बहुत जहरीला है

यह आदमी को बना देता हकला है


जिनका ईमान आसमां से ऊंचा है

उनके आगे स्वर्ग हिस्सा निचला है


निःस्वार्थता होता ऐसा गमला है

इसमें सच, ईमान फूल खिला है


लालच होती बहुत बुरी बला है

छोड़ दे, ईमानदारी ही निर्जला है


इससे मिलती सदा, सफलता है

लोभ से होता न, कोई भला है


जो ईमानदारी की राह चला है

वो ही पाता मंजिला, अलहदा है


जो लोभ, से कभी न बहला है

वो रब का प्यारा मनु पहला है।



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