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Amit Kumar

Abstract Drama Inspirational

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Amit Kumar

Abstract Drama Inspirational

जनता जनार्दन

जनता जनार्दन

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बहुत कुछ हो रहा हैं

जनता जनार्दन के लिये

सरकार भी कर रही हैं

नेता भी कर रहे हैं

अभिनेता भी कर रहे हैं

जानवर भी कर रहे हैं


अब तो इंसान भी कर रहे हैं

जिससे जो हो रहा हैं

वो वही कर रहा हैं

पक्ष भी विपक्ष के साथ मिलकर

एक क़दमताल के

साँचें में ढल रहे हैं


फिर भी मज़दूर बेबस और भूखे हैं

अपने घरों से दूर अधर में लटके हैं

कोई साधन उनके लिए नही

किये जा रहे कोई सुविधा भी

उन्हें मुहैंया नही कराई जा रही

यह अफ़वाह कौन फैला रहा हैं


आख़िर यह मज़दूर कौन हैं ?

आख़िर यह आया कहाँ से हैं ?

हमें इससे क्या सरोकार हैं ?

यह साला जिये या मरें

आख़िर हमारी बला से

कौन से घर किस के घर


आख़िर जाना कहाँ हैं इसे ?

यह जाना क्यों चाहता हैं

कुछ दिनों की बात हैं

3 ही महीने तो होने को हैं

क्या हुआ कोई रोज़गार नहीं रहा तो

क्या हुआ आख़िर मकान का 

किराया देने के 

पैसे नहीं रहे तो


बिजली का बिल बच्चों की ऑनलाइन

क्लास की फीस दे देगा एक दिन

कौन सी आफ़त आ रही हैं

कुछ दिन भूख बर्दाश्त नही कर सकता

लोकडाउन बस खुलने की कगार पर ही तो हैं

अब तो सोनू सूद ने भी

इसकी पूरी जिम्मेदारी ले ली हैं


फिर कौन यह अफवाह फैला रहा हैं

सरकार मूक बनी इस बेचारे की

बेबसी का तमाशा देख रही हैं

यह ज़रूर किसी राक्षस का काम होगा

बाकी सब तो सहयोग कर रहे हैं

मन्दिर बन्द पड़े हैं

मस्ज़िदों में भी लगभग जाना बैन ही मानो

गिरिजा तो कोई जाता हैं ऐसे में

गुरुद्वारा तो सब लंगर खाने जाते थे

सो वो लंगर तो अब भी बंट ही रहे हैं

फिर यह कौन लोग हैं


किस जाति किस प्रजाति

किस धर्म किस संस्थान के लोग हैं

जो मज़दूर हैं या मज़दूर बने हुए हैं

देश का किसान जब सरकार के सहयोग से

कुछ नही कर सका उसका लोन भी 

सरकार ने मुआफ़ कर दिया


पर हुआ क्या फिर भी रस्सी से लटककर

अपनी जान मुफ़्त में ही गंवाता रहा

ऐसे ही यह निकम्मे मज़दूर हैं

राशन भी लेते हैं भाषण भी लेते हैं

सब कुछ तो इन्हें तय किये

अनुसार मिल ही जाता हैं

अब इनके नख़रे देखो

इन्हें बस भी चाहिये घर जाने के लिए

अरे सरकार ने इतनी मुहिम चला रखी हैं


आख़िर वो सारी की सारी मुहिम जाती कहाँ हैं

जो तुम सरकार पर सवाल उठा रहे हो

यह सरकार तुम्हारी आत्मरक्षा के लिए हैं

स्वाभिमान के लिए हैं

तुम्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए हैं


घर पहुंचाने के लिए नही हैं

घर क्यों जाना हैं आख़िर

एक दिन तो वैसे भी मरणा ही हैं

तो आज ही मर जाओ

वैसे भी जाओगे कहाँ इस देश में ही तो

कहीं भी जाओ कहीं भी जाकर मरो

सारा देश ही अपना हैं

जब मरणा वहां भी हैं

यहां भी हैं तो क्यों फालतू में

यह लाचारी बेबसी की बीन बजाते हो।

चुपचाप यहीं मर जाओ न......

ज़्यादा हु हल्ला किया न 

तो देशद्रोह कहलायेगा 

फिर कोई बीच बचाव में नहीं आएगा

तुम्हारा पूरा वज़ूद ही जलकर भस्म हो जाएगा

सोच लो क्या करना हैं


मौन धारण कर आत्मनिर्भर बनना हैं या

फिर देशद्रोही बनकर सूली पर चढ़ना हैं.....

क्या हुआ चुप क्यों हो गए

अरे कहाँ चले गए दिखाई क्यों नही देते

अभी तो सब यहीं थे

अचानक कहाँ सब खो गये......


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