कोख़ की आज़ादी
कोख़ की आज़ादी
देख ले पहल पहल बहू के पैर भारी है, जतन कर ले कि लड़का हो जाये वक़्त निकल गया तो कुछ नहीं कर पायेगी।
याद है तुझे तेरे वक़्त हम सबने कितनी पाठ पूजा की थी तब जाकर पहल में राकेश हुआ। वंश तो बेटे से चलेगा।
तेरी बहू पढ़ी लिखी है वो इन सब बातों पर विश्वास नहीं करती, उसे कहूँगी तो मानेगी नहीं।
एस्प चिंता मत करो मैं रानी से बात करूँगी , सरला ने अपनी नन्द को समझाया।
अरे रानी इधर आ बहू देख ये तेरा पहला बच्चा है, तुझे बहुत ध्यान से रहना है, तू चिंता मत कर हम सब है यहाँ पर तेरी तेरे लिए अब जिम्मेदारी ज्यादा है, बाकी सबकी चिंता मत करना।
मैंने पूजा रख वाई है ये बहुत ही विशेष पूजा है, सुबह सुबह उठकर नाहा लेना, जल्दी जल्दी पूजा हो जाएगी औऱ भूखा भी नहीं रहना पड़ेगा,
रानी ने सोचा कि होगी कोई पूजा, जो माँ जी इस बच्चे के लिए करवा रही है ।
जब रानी पूजा के लिए बैठी तो, सब तैयारी हो रखी थी, पंडित जी भी वही उसका इंतजार कर रहे थे,
वो और राकेश पूजा में बैठ गए।
तभी माँ जी ने एक नारियल बहू की गोद मे रखवाया, रानी ने पूजा का हिस्सा समझ कर रख लिया।
तभी पंडित जी ने उस नारियल का नाम रखने को कहा, जिसका नाम सरला ने अमित रखा।
तो रानी ने पूछा माँ ये नाम आप किसका रख रही हो।
अरे बेटा तेरी होने वाली संतान का,
पर माँ आपको कैसे पता कि लड़का ही है।
तभी बीच मे पंडित जी बोल पड़े, इससे पहले की सरला बात संभाल पाती।
अरे बहू ये पूजा तुम्हे पुत्र धन ही प्राप्त कराएगी।
इसीलिए तो ये पूजा हो रही है।
ये डन उसकी भौहे तन गयी आज के वक़्त में ये कैसा ढोंग है।पर घर की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए रानी ने पूजा कर ली।
तभी कमरे में राकेश से रानी ने सवाल किया, क्या तुम भी यही सब चाहते थे राकेश।
इसमें बुराई ही क्या है, माँ जो कह रही है हमारे भले के लिए ही कह रही होंगी। औऱ पहला बच्चा अगर लड़का हो जाये तो हमारी पीढ़ी ही आगे बढ़ेगी ना, मुझे दूसरा बच्चा अगर लड़की हो तो कोई परेशानी नहीं है।
ये तुम किसी बातें कर रहे हो। पढ़े लिखे होकर भी ये सब तुम्हे शोभा नहीं देता।
अगर इन सब के बाद भी लड़की हुई तो उसे फेक दोगे क्या।
ऐसा नहीं है मेरा एक डॉ जान पहचान का है हम टेस्ट करा लेंगे। ऐसा हुआ तो अबॉर्शन करा लेंगे।
और कितनी बार अबॉर्शन कराएंगे हम जब तक लड़का नहीं होता। कैसी सोच है तुम्हारी । एक बात कान खोल कर सुनलो। तुम से ज्यादा इस बच्चे पर मेरा हक़ है । 9 महीने अपने खून से सिचुंगी इसे। मेरा फ़ैसला होगा कि मुझे क्या करना है।
भूलो मत मैं इस बच्चे का बाप हूँ जो घर का फ़ैसला होगा वही तुम्हें मान्य करना है। वरना चली जाओ अपने मायके, वो भी तलाक देकर, उसके बाद जो करना है वही करना, कमी नहीं है लड़कियों की आज भी मुझसे शादी करने को।
रानी को विश्वास नहीं हो रहा था कि वो एक ऐसे लड़के के नाम ऊनी जिंदगी लिख चुकी थी जो इस सोच का शिकार था, वो दलदल में फस चुकी थी। अब उसके पास दो रास्ते थे या तो घर की मर्जी को स्वीकार करे, और तलाक दे जिंदगी भर के लिए माता पिता के लिए बोझ बन जाये। अंतत उसने हार मानली, उसने अपनी कोख उनके हवाले करदी, ।
दोस्तों ये सिर्फ रानी की कहानी नहीं है बल्कि आज भी हमारे समाज का वो दलदल है जिसमें हजारों लड़कियां बलि चढ़ती है, और वो मजबूर हो जाती है, क्योंकि ना माँ बाप साथ देते ना ससुराल वाले अंततः उन्हें अपनी जिंदगी के फ़ैसले समर्पित करने पड़ते है,
हमारे आज़ाद देश मे कोख की आजादी होनी चाहिए, जहाँ एक माँ अपने बच्चे को बिना डर के इस दुनिया में ला सके।