मुम्बई
मुम्बई
धड़कता है दिल
मुंबईकर का
लोकल की
खटर-पटर
और सागर की
गर्जना के साथ।
भागता है आदमी
भागते हैं बच्चे
भागते हैं बूढ़े
भागती है लोकल
पर
अचानक
क्यों ठहर जाता है
मन
सागर संग सूरज की
अठखेलियां देखकर।
भीड़ में गुम हुआ
आदमी
खोज रहा खुद को
सागर की
लहरों के बीच।
गुम हो रहा
बचपन
लोकल की खटर-पटर
चौल की सीलन
मच्छी मार्केट क
ी
चेंचामेंची
और
टैक्सी के पहियों के बीच।
किसी के दिल में
होती है जुम्बिश
होटल ताज के
कंगूरों पर
बादल के छौनों का
नृत्य देखकर
पर
जेब में पड़े सिक्कों का
स्पर्श
खींच लाता है उसके दिल को
झोपड़पट्टियों के हुजूम में।
लालबत्ती
जीवन है
कुछ नौनिहालों का
वो उन्हें देती है
खाना
कपड़ा
कुछ सपने भी
कार के शीशे के
अंदर से झांकती
एक जोड़ी नीली आंखों
के साथ साथ चलने
उनके जैसा बनने का।