कोख में बेटी
कोख में बेटी
मैं बेटी हूं
कोख में लेटी हूं
नौ माह का अंतराल
इसी इंतज़ार में बैठी हूं।
अंग मेरा सब बन चला
मन मेरा है मनचला
दिल जो मेरा नन्हा सा
बस अब उड़ान भर चला।
मां की प्यारी बनूंगी
पापा की दुलारी बनूंगी
जीत के दिल हर एक का
परिवार की फुलवारी बनूंगी।
जब होगा जन्म मेरा
होगा एक नया सवेरा
पांव पड़ेंगे ना ज़मीन पे किसी के
घर बनेगा खुशियों का डेरा।
सब मुझे खिलाएंगे
दूध पे दूध पिलाएंगे
लेने को मुझे गोद में
एक दूजे से लड़ जाएंगे।
बोलना मुझे सिखाएंगे
लाड मुझे लडाएंगे
गिरूंगी जब पल पल में
चलना मुझे सिखाएंगे।
मैं भी ज़रा इतराऊंगी
थोड़ा भाव भी खाऊंगी
जो ना मनाया किसी ने और
तो झट से मान जाऊंगी।
अपनी गुड़िया संग खेलूंगी
सखी संग झूला झुलूंगी
जो आया मौसम बारिश का
बूंद बूंद को जोड़ूंगी।
पढूंगी लिखूंगी
कुछ काम करूंगी
जग में रह कर
कुछ नाम करूंगी।
देखें जो सपने मां पापा ने
हर एक साकार करूंगी
मैं तो एक परिंदा हूं
इस जहां की बाशिंदा हूं।
सांसें तो पूरी नहीं पड़ती
मां के खून से जिंदा हूं
पर आज
ना जाने क्यों सब उदास हैं
किस खबर से यूं हताश हैं ?
कर सकती हूं महसूस उस पीर को
जिससे मां बहुत निराश हैं
अब मां की आंखों से देख सकती हूं
जा रहा कहा वो सुन सकती हूं।
ना कर पाऊं दखल भले
पर फितरतों को समझ सकती हूं
मैं देख पा रही हूं
जो रहा हो वो समझ पा रही हूं।
मेरी वजह से दुख समाया है
मां की आंखों में आसूं हैं
क्यों बेटा नहीं बेटी पाया है
मां मुझे मारना चाहती हैं।
जो खिला नहीं फूल
वो तोड़ना चाहती हैं
मेरी उंगली पकड़ने से पहले ही
उस छोड़ना चाहती हैं।
मां मुझे मौत ना देना
मैं जीना चाहती हूं
चोट ना देना
तेरे आंचल में छिपना चाहती हूं
टुकड़ों में यूं काट ना देना
तेरी गोद में सोना चाहती हूं
जानवरों में फिर बांट ना देना
ना पत्थर हूं ना बेजान हूं।
हूं बेटी तो क्या इंसान हूं
बेटों से ज्यादा बेटियां शरीफ होती हैं
नहीं हूं बेटा तो क्या
मुझे भी तकलीफ होती है।
अंग मेरा काट रहे हैं
मुझे दर्द हो रहा है
बचाले तू मां
मुझे कष्ट हो रहा है
तू जो कहेगी वो करूंगी
तेरे लिए जियूंगी तेरे लिए मरूंगी
ना मार मुझे यूं तड़पा तड़पा के
हर आरज़ू पूरी करूंगी
एक मौका तो देती मां
छू दिखाती मैं आसमां
कैसे मुझसे पीछा छुड़ा लिया
पैदा होने से पहले जीवन मिटा दिया
तेरे लिए अग्नि से खेल जाती
दर्द तुझे छूने से पहले
मैं खुद झेल जाती
जो ना कर पाता बेटा
वो कर के दिखाती
अगर थी इतनी ही ख्वाहिश
तो बेटा भी बन जाती ।
मिटा दिया तूने बदन तो क्या
ये चेतना अब भी जीवित है
छीन लिया ये जहां तो क्या
अस्तित्व अब भी जीवित है।
जो उड़े खुले आकाश में
उस आकाश की चिरैया हूं
जो दिखे कहीं किसी डाल पे
उस डाल की गौरैया हूं
जो ना हो शिकस्त
वो तैरती नैया हूं।
मैं ही बावली थी
समझ खुद को गुलशन में
कांटो में जी रही थी
ना पूरे हो सकने वाले
ख्वाब देख रही थी।
खैर
मैं तो एक चेतना हूं
स्वतंत्र परिंदा हूं
इस दुनिया की बाशिंदा हूं
फिर से उड़ान भरूंगी
वहीं ख्वाब संजोए
एक कोख की तलाश में
फिर एक मां की तलाश में
लाड की तलाश में
दुलार की तलाश में।
