गर्मी तेरे क्या कहने
गर्मी तेरे क्या कहने
गर्मी तेरे क्या कहने
पसीने के आते रेले
चर्बी हो जाती,कम
जो काम करे,जम
गर्मी है,फायदेमंद
आंनद ही आंनद
गर्मी में पिघलाते है,
चर्बी को अक्लमंद
बरगद के वृक्ष नीचे
गर्मी में हवा मंद-मंद
देती,नींद मस्त मलंग
गर्मी आती उन्हें पसंद
जो कर्म करते,मकरंद
ज्यादा लोग,जयचंद
पृथ्वी जैसे भी है,चंद
मर जाते,झुकते न पुरंद
कर्मवीर फैलाते,गंध
गर्मी तेरे1 क्या कहने
गर्मी में आते तरबूजे
गर्मी में आते खरबूजे
गन्ना,आम्र जूस अनूठे
गर्मी में न चल पाये,
कोई भी बिना जूते
गर्मी में धरा यूँ तपे
जूं भट्टी में लोह जूझे
पर कहती है,गर्मी
जितना तुम तपोगे
उतना खरा बनोगे
जैसे कुंदन रूप बने
तपकर कोई कलूटे
मेहनत की गर्मी
देती है,सदा नरमी
जिन्हें पैसे की गर्मी
वो होते सदा झूठे
पसीना बहा साखी
मेहनत कर सांची
जितना बहे,पसीना
उतना खिले,बेल-बूटे
गर्मी से न डर तू,
कर्म कर तू,अनूठे
तू पायेगा,जरूर
कामयाबी के खूंटे
सर्दी,गर्मी और वर्षा
सबको कर्मवीर कहे
एक जैसे ही अंगूठे
उसके लिये सम है,
हर मौसम के जूते
गर्मी से कोई न रूठे
गर्मी में पानी बूंदे
लगती,अमृत जैसे
प्यास मारे कंठ को
मिले शीतल जल बूंदे
लगे,मिल गया स्वर्ग
गर्मी में पानी झरने
मन के खिलाते तने
गर्मी में लू थपेड़े
अग्नि के देते,छींटे
पेड़ की छांव तले
जब मिले विश्रान्ति
साथ में जल पीले
रेगिस्तान के बीच
आती,ठंडी लहरे
आज प्याऊ भूले
मटके छूटे,
फ्रिज में आज
शीतल जल ढूंढे
गर्मी तेरे क्या कहने
उतारती अमीर गहने
पहले प्रियजन मरे
लगाते प्याऊ बड़े
आज के दौर में
हम संस्कृति भूले
आओ लौट चले
संस्कृति ओर
बांधे सब परिंडे
ताकि पक्षी जी ले
जल सरंक्षण करे
प्रकृति रक्षण करे
पारिस्थिक तंत्र में
न ठोंके कोई कीलें
जिससे गर्मी, गर्मी रहे
नहीं कोई मनु जले
चहुँओर शीतल रहे
अंदर-बाहर पतीले।