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Rakesh Tiwari

Drama

3.4  

Rakesh Tiwari

Drama

कथा द्रौपदी की...तब से अब तक

कथा द्रौपदी की...तब से अब तक

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अग्नि जैसा जीवन ,एक प्रश्न चिन्ह था सम्मान उसका

वो यज्ञ के ताप से निकली थी, यग्नसैनी था नाम उसका


पतझड़ सा जीवन पथ द्रुपद कन्या का, थी कंटकों की सहेली वो

न सखियाँ, ना बाबुल का दुलार, न गुड्डे-गुड़ियों से खेली वो


अद्भूत थी, आलोकिक थी, कुछ ऐसा उसने स्वरुप लिया

न बचपन देखा, न बचपना, सीधे युवती का रूप लिया


था कोमल सुन्दर मन, पर भावनाओं से बंजर हुआ

सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर ने जीता उसे, जब समय घटित स्वयंवर हुआ


अर्जुन पत्नी का मान पा कर भी, सम्मान मैं वह घट गयी

कुंती के एक ब्रह्मवाक्य से, वो पाँच भाइयों में बँट गयी


वो पांडव कुल की कुलवधू, फिर भी क्षण-क्षण अपमान मिला

द्रुपद की द्रौपदी को था, पांचाली का नाम मिला


फिर वो दिन आया, जब आर्यवीर सभी, मर्यादा सीमा के पार गए

जब धर्मराज अधर्म में ऐसे उलझे, कि धर्म पत्नी को हार गए


न समझा कोई नारी का शोषित मन, न कोई अपने संस्कार समझा

दुर्योधन ने जीती हुई दासी पर, बस अपना ही अधिकार समझा


घनघोर लज्जित उस सभा में फिर, अन्याय का समावेश हुआ

जब दुशाशन को पांचाली के, वस्त्र हरण का आदेश हुआ


क्या यही है, अंत का अंतिम क्षण, सारी धरा थी सोच रही

रथी महारथी सबसे थी, द्रौपदी ये प्रश्न पूछ रही


क्यों ये संसार देखना चाहता है, विकराल स्वरुप अगाध मेरा

क्या पांडवो को स्वीकार करना, यही था एक अपराध मेरा


क्या रही नहीं करुणा भी शेष, है इतनी हिंसक हो गयी

क्यों समरवीरों की सभा आज, सारी नपुंसक हो गयी


जो अंतिम विश्वास के क्षण थे बचे, सब रेत की तरह ढह गए

हूँ मैं विवश क्षमा करना, जब पितामह भी ये कह गए


अश्रुओं में बह गया सभी, जो पांचाली ने श्रृंगार किया

ये सम्मानित नहीं ये शापित है, ऐसे राधेय ने भी हुंकार किया


थे सारे वीर शीश झुकाए हुए, तो फिर किसे निहारती वो

ऐसे में न बुलाती गोविन्द को, तो फिर किसे पुकारती वो


एक चीर का ऋण था गोविन्द पर, सो उसे भी द्वारकाधीश ने उतार दिया

भरी सभी में कृष्ण ने फिर, कृष्णा का श्रृंगार किया


बोली कुंठित द्रुपद कन्या कि, आज विवश हैं पर न सोचना कि तुम्हें छोड़ देंगे

अब खुले रहेंगे केश मेरे, अब पांडव मेरा प्रतिशोध लेंगे


अब धोने को तुम्हारे केश, न नीर दूंगा न तुम्हारे चोटिल मन को धीर दूंगा

प्रतिज्ञा ली भीमसेन ने दुशासन की छाती चीर दूंगा


इस घटना ने महाप्रलय का सृजन किया, यह तो व्यास भी मानते हैं

फिर महाभारत के महाराण का महासमर हम सभी जानते हैं


फिर थर थर काँपी वसुंधरा, जब तक वो समर समाप्त हुआ

प्राण प्रिय अभिमन्यू भी वीर गति को प्राप्त हुआ


ये सिर्फ त्रेता द्वापर की बात नहीं, ये किरदार आज भी ज़िंदा हैं

है द्रौपदी आज की शोषित सी, और पांडव उसके शर्मिंदा हैं


हैं कानून, प्रशासन, परिवार, पत्रकार और नेता सभी पांडवों के किरदार में

सब विवश बैठे हैं द्रौपदी के निर्वस्त्र होने के इंतज़ार में


अब द्रौपदी प्रश्न न पूछेगी, उसे खुद प्रश्न बनना होगा

कलयुग मैं गिरधर न आयेंगे, उसे स्वयं कृष्ण बनना होगा


आज की द्रौपदी की लाज नहीं धुलनी चाहिए

आज की द्रौपदी को यह बात नहीं भूलनी चाहिए


के वही शक्ति है और उसे ही शक्ति का सँचार करना होगा

अपने ही हाथों से दुशाषन का संहार करना होगा


फिर कोई दुर्योधन या आर्यव्रत उसे टोक नहीं सकता

द्रौपदी जब दुर्गा बन कर आगे बढ़ेगी, तो उसे कोई रोक नहीं सकता ।।



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