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Arshneet Kaur

Drama

4.9  

Arshneet Kaur

Drama

एक कहानी

एक कहानी

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आइये आज एक कहानी सुनाएं आपको हम,

एक आदमी था जिसके चार बच्चे थे और पैसे थे कम ।

रोज सुबह उठ कर खेत में हल जोत कर बच्चों को उठाता,

स्कूल भेजने के पैसे नहीं थे इसलिए खेती बाड़ी उनको सिखाता।

बीवी गई थी उसकी भाग, हो परेशान उसकी गरीबी से,

एक भाई भी था जो मर चुका था टी.बी से।


बच्चे अब बड़े हो रहे थे फरमाइशें उनकी बढ़ रही थी,

उसकी बढ़ती उम्र के साथ शरीर की तकलीफें भी बढ़ रही थी।


एक दिन हुआ यूँ कि उसने कहा अपने बच्चों से,

"मैं मर जाऊंगा तो कहना अपनी माँ से बहुत प्यार करता था मैं उससे,

कि सोचा नहीं था यूं छोड़कर चली जाएगी वो मुझे,

रोका नहीं मैंने उससे रिश्तों के बंधन थे उलझे।


एक चिट्ठी अपने परिवार के नाम लिख दी है मैंने,

कुछ सालों की बचत के साथ बिस्तर पर छोड़ दी है मैंने।

कि रोना नहीं तुम इस चिट्ठी को पढ़कर कसम है तुम्हें मेरी,

कि हर सूरज की किरण के बाद आती है रात अंधेरी।"


बच्चों की आंखें अभी ही नम थी,

सहनशीलता की शक्ति उनमें थोड़ी कम थी।


वो बोले,

"ना बाबा, अभी तो होली दिवाली मना कर जाना है,

हमारी शादी के पकवान खाकर जाना है।

माँ भी वापस आएगी एक दिन,

हमारे घर को फिर घर बनाएगी एक दिन।


एक दिन खुश होंगे हम सभी,

तुम जाने की बात क्यों करते हो अभी।

तुम एक पौधे हो और हम तुम्हारे फूल,


तुम कहते थे हिम्मत मत हारना गए हो क्या तुम भूल ?

वो बिस्तर पर जो चिट्ठी छोड़ी है तुमने उसकी अभी जरूरत नहीं,

तुमसे बहुत से किस्से सुन्ने हैं तुम बैठो तो सही।"


बात स्थिर बैठा था, कुछ कह भी नहीं रहा था,

वह जा चुका था, जैसा उसने कहा था।

बच्चे उसे पुकार रहे थे, पड़ोसी उन्हें संभाल रहे थे।

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कुछ दिनों बाद वो चिट्ठी पढी उन्होंने,

लिखा था उसमें कि

"अभी तुम्हें कई सपनों के बीज है बोने।

अभी बहुत दूर जाना है तुम्हें,

अपना शहर बनाना है तुम्हें।

बाप हूँ मैं, माँ शायद बन नहीं पाया,

पर जितनी हैसियत थी बच्चों, तुम्हें उससे ज्यादा खिलाया।


अब जाते जाते एक काम करना तुम मेरा,

कि पिछला सब भुला कर जीना एक नया सवेरा।

इन पैसों से तुम बैठना एक दुकान,

छोटे छोटे चिल्लर जोड़ बना लेना एक मकान।

फिर माँ को अपनी बुलाकर उसमें,

सजाना एक नया आशियाना,

ध्यान रखना तुम अपना और उसको भी सहलाना।


मैं रहूँगा तुम्हारी हर आवाज़ में,

तुम्हारी जि़द में तुम्हारे हर अल्फाज़ में।

बस याद रखना तुम इतना कि बहुत प्यार करता हूँ मैं तुम सबसे,

बस खुशी से मोहब्बत कर लो तुम अब से।"


बच्चों ने एक आंसूँ भी नहीं बहाया,

अपने बाप को गर्व का एहसास कराया।

खोली उन्होंने एक छोटी सी दुकान,

रखे उसमें हस्त निर्मित सामान।

अपने बाप के सपने को पूरा कर,

एक साल बाद बनाया एक घर।


फिर चिट्ठी के अनुसार मां को बुलाया अपनी,

सालों बाद माँ ने उन्हें गोद में सुलाया अपनी।

चिट्ठी पढ़ अपने पति का, पिघल गई वो पत्थर दिल,

अपने कुकर्मों का एहसास करा छोड़ गया वो बुज़दिल।


इस दर्द भरी कहानी में बहुत से राज़ छुपे थे,

जहाँ प्रेम, प्यार और वात्सल्य मिले, वहीं पर सभी झुके थे।

तुम हारो नहीं इस जीवन से, इसमें अपना इतिहास रचो,

अपनी हसी से इश्क करो और आंसुओं से बचो।


जो होना है वो होगा, जिसे जाना है वह जाएगा,

पर इस जीवन की दौङ में एक वही प्रथम आएगा,

जो डटकर सामना करें हर मुसीबत का,

जो आगे बढ़ते जाए ना इंतज़ार करे नसीहत का।


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