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Arshneet Kaur

Tragedy

5.0  

Arshneet Kaur

Tragedy

अब समाज बदलेगा

अब समाज बदलेगा

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जवान टपोरी लड़कों से

रखा करो तुम दूरी

कुछ बोल वह तो विरोध ना करना

है तुम्हारी यह मजबूरी

अंधेरे से पहले घर लौट आओ

भले ह काम अधूरा

उपयुक्त हमेशा कपड़े पहनो

बदन ढको तुम पूरा

तुम्हारी इज्जत समाज में

 है सबसे ज्यादा जरूरी

कुछ बोले वो, तो विरोध ना करना

है तुम्हारी यह मजबूरी


कभी अपमान हो जाए अगर

तो जहर समझ कर पी लो

मगर बताना नहीं किसी को

घुट घुट कर तुम जी लो

दर्द को सहन करना

तुम्हारा धर्म एवं काम है

खुशी तुम्हारी किस्मत में नहीं

ना महफिल, ना शाम है

फट गए हैं अगर कपड़े तुम्हारे

तो छुपकर घर जाओ और सी लो

मगर बताना नहीं किसी को

 घुट घुट कर तुम जी लो


तु

म दुर्गा लक्ष्मी और पार्वती हो

तुम्हें हर त्योहार में पूजेंगे

पर उसकी अगली ही शाम को

"चलेगी क्या" तुझसे पूछेंगे

तुम रो लो, चीख लो

पर रुकने को मत कहना उससे

जितना भी दर्द हो तुम्हें

अपना फर्ज समझकर सहना उसे

इस दर्द से उनकी बहनें भी गुजरी है

पहले उसके कातिलों से जूझेंगे

फिर उसी की अगली शाम को

"चलेगी क्या" तुझसे पूछेंगे


यह जहां तुम्हारा भी है

जंजीरों को तुम तोड़ लो

इन बातों को अनसुना कर

टूटे सपने जोड़ लो

कोई रोके अगर तुम्हें कहीं

तो रुक कर उसे पीट दो

किसी को रोक ना पाए कभी

हथियार उसका तुम खींच दो

रोना नहीं रुलाना है

पुराने ख्यालों को अब तुम मोड़ लो

इन बातों को अनसुना कर

टूटे सपने जोड़ लो


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