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Dr. Akansha Rupa chachra

Tragedy

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Dr. Akansha Rupa chachra

Tragedy

प्रतिभाशाली स्त्री

प्रतिभाशाली स्त्री

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बहुत कठिन होता है

स्त्री का प्रतिभाशाली होना,

अपनी आभा को

अपनी ही परतों में छिपाकर

द्युतिहीन होना। 


उसकी लकीर काटने की

चलती रहती हैं कुचेष्टाएँ,

बात-बात पर नीचा साबित करने की

होती हैं कुमन्त्रणाएं,

उसकी ज़रा-सी भी चमक 

आँखों में चुभती है,

नुकीले शब्द बाणों से

अक्सर उसकी सांसें घुटती हैं।

आसान नहीं होता

श्रापित अहिल्या के लिए

पाषाण का बोझ ढोना,

बहुत कठिन होता है

श्रेष्ठ होने के दम्भ में जकड़े

लोगों के साथ मरना और जीना।

बहुत कठिन होता है,

स्त्री का प्रतिभाशाली होना। 


छिपाती हैं अपनी कथाएं

छिपा कर रखती है अपनी व्यथाएँ,

छिप-छिप कर लिखती है

छिप-छिप कर पढ़ती है

फिर भी प्रतिभा 

कहीं न कहीं से झलक उठती है...

चाल में, 

काम में, 

कथन में, 

मंथन में...

और उग आती है उनकी विद्रूपताएं,

'खुद को क्या समझती है' से लेकर

'हमें मत समझा' के दंश को पीना,

बहुत कठिन होता है

अदृश्य खंजरों के बीच

तिरस्कार के कटघरे में खड़े होना।

बहुत कठिन होता है

स्त्री का प्रतिभाशाली होना।


पुरुष उसे बार बार तोड़ता है,

उसकी कहानी के पात्रों को

अपने हिसाब से जोड़ता है,

खींचता है लकीरें

परिभाषित करता है सीमाएं,

और उसकी मर्यादा की

मांगता है परीक्षाएं,

आसान नहीं होता

दूसरों की विफलताओं का

खुद पर लगा लाँछन ढोना,

बहुत कठिन होता है

राजा जनक की 'वैदेही' होना।

बहुत कठिन होता है

स्त्री का प्रतिभाशाली होना।


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