शिकार
शिकार
नोच कर सब खा गए
उसको सरे बाज़ार में,
प्रथम पृष्ठ पर छपी
खबर ये अखबार में,
झुंड में थे वो,
वार सबकी तरफ से आए थे,
टुकड़े बदन के इसलिए
सबने थोड़–ज्यादा पाए थे
था मासूम वो शिकार जो
अपनी जमीं पर हो गया,
वो लड़ा भी,
गिर के हुआ खड़ा भी,
फिर अनंत में खो गया।
जो मर गया था कौन वो
नस्ल से इंसान था,
क्या नाम लूं उनका
जिनका घृणित ये काम था,
बस जान कर हैरान हूं,
हूं व्यथित व्यवहार में,
नोच कर सब खा गए
उसको सरे बाज़ार में,
प्रथम पृष्ठ पर छपी
खबर ये अखबार में।
घात हुआ करते ऐसे
जब होता कोई प्रतिकार नहीं,
हम उनको हम पलने देते हैं,
जिनके सम्यक आचार नहीं,
होना उदार क्या इतना भी
आघात पुनः हम पाते हैं,
हम पर निर्भर रहने वाले
छल हमसे ही कर जाते हैं,
बहुत हुआ नाटक सारा
अब देर न हो प्रहार में
नोच कर सब खा गए
उसको सरे बाज़ार में,
हम बेशर्म हो पढ़ते रहें हैं
खबर ऐसी अखबार में।
